संजय उवाच:=
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं
व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसंगम्य राजा
वचनमब्रवीत्।। २।।
इस पर संजय बोला: उस समय राजा
दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पांडवों की सेना को देखकर और द्रोणाचार्य के पास जाकर, यह वचन कहा।
पश्यैतां
पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव
शिष्येण धीमता।। ३।।
अत्र शूरा महेष्वासा
भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च
महारथः।। ४।।
हे आचार्य, आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार
खड़ी की हुई पांडुपुत्रों की इस भारी सेना को देखिए। इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों
वाले, युद्ध में भीम और अर्जुन के समान बहुत से
शूरवीर हैं। जैसे सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद।
धृष्टकेतुश्चेकितानः
काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च
शैब्यश्च नरपुंगवः।। ५।।
और धृष्टकेतु, चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित कुंतिभोज और मनुष्यों
में श्रेष्ठ शैब्य।
युधामन्युश्च विक्रांत
उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव
महारथाः।। ६।।
अस्माकं तु विशिष्टा ये
तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं
तान्ब्रवीमि ते।। ७।।
और पराक्रमी युधामन्यु तथा
बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु और द्रौपदी के पांचों
पुत्र, यह सब ही महारथी हैं।
हे ब्राह्मण श्रेष्ठ, हमारे पक्ष में भी जो-जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिए। आपके
जानने के लिए मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको कहता हूं।
मनुष्य का मन जब हीनता की
ग्रंथि से, इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स से पीड़ित होता है, जब मनुष्य का मन अपने को भीतर हीन समझता है, तब सदा ही अपनी श्रेष्ठता की चर्चा से शुरू करता है। लेकिन जब हीन
व्यक्ति नहीं होते, तब सदा ही दूसरे की श्रेष्ठता से चर्चा शुरू
होती है। यह दुर्योधन कह रहा है द्रोणाचार्य से, पांडवों की सेना में कौन-कौन
महारथी, कौन-कौन महायोद्धा इकट्ठे हैं। इससे वह शुरू
कर रहा है। यह बड़ी प्रतीक की,
बड़ी सिम्बालिक बात है। साधारणतः शत्रु की
प्रशंसा से बात शुरू नहीं होती। साधारणतः शत्रु की निंदा से बात शुरू होती है।
साधारणतः शत्रु के साथ अपनी प्रशंसा से बात शुरू होती है। शत्रु की सेना में
कौन-कौन महावीर इकट्ठे हैं,
दुर्योधन उनसे बात शुरू कर रहा है।
दुर्योधन कैसा भी व्यक्ति हो, इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स से पीड़ित व्यक्ति नहीं है, हीनता की ग्रंथि से पीड़ित व्यक्ति नहीं है। और यह बड़े मजे की बात
है कि अच्छा आदमी भी अगर हीनता की ग्रंथि से पीड़ित हो तो उस बुरे आदमी से बदतर
होता है, जो हीनता की ग्रंथि से पीड़ित नहीं है। दूसरे
की प्रशंसा से केवल वही शुरू कर सकता है, जो अपने प्रति बिलकुल आश्वस्त
है।
यह एक बुनियादी अंतर सदियों
में पड़ा है। बुरे आदमी पहले भी थे,
अच्छे आदमी पहले भी थे। ऐसा नहीं है कि आज
बुरे आदमी बढ़ गए हैं और अच्छे आदमी कम हो गए हैं। आज भी बुरे आदमी उतने ही हैं, अच्छे आदमी उतने ही हैं। अंतर क्या पड़ा है?
निरंतर धर्म का विचार करने
वाले लोग ऐसा प्रचार करते रहते हैं कि पहले लोग अच्छे थे और अब लोग बुरे हो गए
हैं। ऐसी उनकी धारणा, मेरे खयाल में बुनियादी रूप से गलत है। बुरे
आदमी सदा थे, अच्छे आदमी सदा थे। अंतर इतना ऊपरी नहीं है, अंतर बहुत भीतरी पड़ा है। बुरा आदमी भी पहले हीनता की ग्रंथि से
पीड़ित नहीं था। आज अच्छा आदमी भी हीनता की ग्रंथि से पीड़ित है। यह गहरे में अंतर
पड़ा है।
आज अच्छे से अच्छा आदमी भी
बाहर से ही अच्छा-अच्छा है,
भीतर स्वयं भी आश्वस्त नहीं है। और ध्यान
रहे, जिस आदमी का आश्वासन स्वयं पर नहीं है, उसकी अच्छाई टिकने वाली अच्छाई नहीं हो सकती। बस, स्किनडीप होगी,
चमड़ी के बराबर गहरी होगी। जरा-सा खरोंच दो
और उसकी बुराई बाहर आ जाएगी। और जो बुरा आदमी अपनी बुराई के होते हुए भी आश्वस्त
है, उसकी बुराई भी किसी दिन बदली जा सकती है, क्योंकि बहुत गहरी अच्छाई बुनियाद में खड़ी है--वह स्वयं का
आश्वासन।
इस बात को मैं महत्वपूर्ण
मानता हूं कि दुर्योधन जैसा बुरा आदमी एक बहुत ही शुभ ढंग से चर्चा को शुरू कर रहा
है। वह विरोधी के गुणों का पहले उल्लेख कर रहा है, फिर पीछे अपनी सेना के
महारथियों का उल्लेख कर रहा है।
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च
समितिंजयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च
सौमदत्तिस्थैव च।। ८।।
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे
त्यक्तजीविताः।
नानाशस्त्र प्रहरणाः सर्वे
युद्धविशारदाः।। ९।।
एक तो स्वयं आप और पितामह
भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा, और भी बहुत से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्र-अस्त्रों से युक्त
मेरे लिए जीवन की आशा को त्यागने वाले सबके सब युद्ध में चतुर हैं।
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं
भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं
भीमाभिरक्षितम्।। १०।।
अयनेषु च सर्वेषु
यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः
सर्व एव हि।। ११।।
और भीष्म पितामह द्वारा
रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह
सेना जीतने में सुगम है। इसलिए सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग
सब के सब ही निःसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें।
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