मंगलवार, 19 मार्च 2013

विचारवान अर्जुन और युद्ध का धर्मसंकट (भाग-1 प्रथम प्रवचन)





धृतराष्ट्र उवाच:
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय।। १।।

धृतराष्ट्र बोले: हे संजयधर्मभूमि कुरुक्षेत्र में इकट्ठे हुएयुद्ध की इच्छा वालेमेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया धृतराष्ट्र आंख से अंधे हैं। लेकिन आंख के न होने से वासना नहीं मिट जातीआंख के न होने से कामना नहीं मिट जाती। काश! सूरदास ने धृतराष्ट्र का खयाल कर लिया होतातो आंखें 

फोड़ने की कोई जरूरत न होती। सूरदास ने आंखें फोड़ ली थींइसलिए कि न रहेंगी आंखेंन मन में उठेगी कामना! न उठेगी वासना! पर आंखों से कामना नहीं उठतीकामना उठती है मन से। आंखें फूट भी जाएंफोड़ भी डाली जाएंतो भी वासना का कोई अंत नहीं है।

गीता की यह अदभुत कथा एक अंधे आदमी की जिज्ञासा से शुरू होती है। असल में इस जगत में सारी कथाएं बंद हो जाएंअगर अंधा आदमी न हो। इस जीवन की सारी कथाएं अंधे आदमी की जिज्ञासा से शुरू होती हैं। अंधा आदमी भी देखना चाहता है उसेजो उसे दिखाई नहीं पड़ताबहरा भी सुनना चाहता है उसेजो उसे सुनाई नहीं पड़ता। सारी इंद्रियां भी खो जाएंतो भी मन के भीतर छिपी हुई वृत्तियों का कोई विनाश नहीं होता है।
तो पहली बात तो आपसे यह कहना चाहूंगा कि स्मरण रखेंधृतराष्ट्र अंधे हैंलेकिन युद्ध के मैदान पर क्या हो रहा हैमीलों दूर बैठे उनका मन उसके लिए उत्सुकजानने को पीड़ितजानने को आतुर है। दूसरी बात यह भी स्मरण रखें कि अंधे धृतराष्ट्र के सौ पुत्र हैंलेकिन अंधे व्यक्तित्व की संतति आंख वाली नहीं हो सकती हैभला ऊपर से आंखें दिखाई पड़ती हों। अंधे व्यक्ति से जो जन्म पाता है--और शायद अंधे व्यक्तियों से ही लोग जन्म पाते हैं--तो भला ऊपर की आंख होभीतर की आंख पानी कठिन है।
यह दूसरी बात भी समझ लेनी जरूरी है। धृतराष्ट्र से जन्मे हुए सौ पुत्र सब तरह से अंधा व्यवहार कर रहे थे। आंखें उनके पास थींलेकिन भीतर की आंख नहीं थी। अंधे से अंधापन ही पैदा हो सकता है। फिर भी यह पिताक्या हुआयह जानने को उत्सुक है।
तीसरी बात यह भी ध्यान रख लेनी जरूरी है। धृतराष्ट्र कहते हैंधर्म के उस कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए इकट्ठे हुए...।
जिस दिन धर्म के क्षेत्र में युद्ध के लिए इकट्ठा होना पड़ेउस दिन धर्मक्षेत्र धर्मक्षेत्र बचता नहीं है। और जिस दिन धर्म के क्षेत्र में भी लड़ना पड़ेउस दिन धर्म के भी बचने की संभावना समाप्त हो जाती है। रहा होगा वह धर्मक्षेत्रथा नहीं! रहा होगा कभीपर आज तो वहां एक-दूसरे को काटने को आतुर सब लोग इकट्ठे हुए थे।
यह प्रारंभ भी अदभुत है। यह इसलिए भी अदभुत है कि अधर्मक्षेत्रों में क्या होता होगाउसका हिसाब लगाना मुश्किल है। धर्मक्षेत्र में क्या होता हैवह धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि वहां युद्ध के लिए आतुर मेरे पुत्र और उनके विरोधियों ने क्या किया हैक्या कर रहे हैंवह मैं जानना चाहता हूं।
धर्म का क्षेत्र पृथ्वी पर शायद बन नहीं पाया अब तकक्योंकि धर्मक्षेत्र बनेगा तो युद्ध की संभावना समाप्त हो जानी चाहिए। युद्ध की संभावना बनी ही है और धर्मक्षेत्र भी युद्धरत हो जाता हैतो हम अधर्म को क्या दोष देंक्या निंदा करें! सच तो यह है कि अधर्म के क्षेत्रों में शायद कम युद्ध हुए हैंधर्म के क्षेत्रों में ज्यादा युद्ध हुए हैं। और अगर युद्ध और रक्तपात के हिसाब से हम विचार करने चलेंतो धर्मक्षेत्र ज्यादा अधर्मक्षेत्र मालूम पड़ेंगेबजाय अधर्मक्षेत्रों के।
यह व्यंग्य भी समझ लेने जैसा है कि धर्मक्षेत्र पर अब तक युद्ध होता रहा है। और आज ही होने लगा हैऐसा भी न समझ लेनाकि आज ही मंदिर और मस्जिद युद्ध के अड्डे बन गए हों। हजारों साल पहलेजब हम कहें कि बहुत भले लोग थे पृथ्वी परऔर कृष्ण जैसा अदभुत आदमी मौजूद थातब भी कुरुक्षेत्र के धर्मक्षेत्र पर लोग लड़ने को ही इकट्ठे हुए थे! यह मनुष्य की गहरे में जो युद्ध की पिपासा हैयह मनुष्य की गहरे में विनाश की जो आकांक्षा हैयह मनुष्य के गहरे में जो पशु छिपा हैवह धर्मक्षेत्र में भी छूट नहीं जातावह वहां भी युद्ध के लिए तैयारियां कर लेता है।
इसे स्मरण रख लेना उपयोगी है। और यह भी कि जब धर्म की आड़ मिल जाए लड़ने कोतो लड़ना और भी खतरनाक हो जाता है। क्योंकि तब जस्टीफाइडन्याययुक्त भी मालूम होने लगता है।
यह अंधे धृतराष्ट्र ने जो जिज्ञासा की हैउससे यह धर्मग्रंथ शुरू होता है। सभी धर्मग्रंथ अंधे आदमी की जिज्ञासा से शुरू होते हैं। जिस दिन दुनिया में अंधे आदमी न होंगेउस दिन धर्मग्रंथ की कोई जरूरत भी नहीं रह जाती है। वह अंधा ही जिज्ञासा कर रहा है।
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शेष अगले पोस्ट में पढें,,,,,,,



1 टिप्पणी:

  1. Awasthi ji ..namaskar.
    aapka blog dekha..achha laga..maine ye book pahle se hi padh rakhi hai ..bahut dino se net par search kr rahi thi...aaj aap ke blog me fir mil gaya..
    mere bhi bachpan se hi bahut prashn the...aur iss book me bhi ek jagah aata hai k ..."DEVI DEVTA JAB VAAM MARG ME GAYE.."....isi tarah aur bhi aneko ...
    mujhe sabhi prashno k uttar mile BRAHMAKUMARIS me jaha swayam bhagwan pada rahe hai...geeta me ata h BHAGWANUVACH...vahi nirakar parmatma..
    ek hi request n suggestion k aap bhi dekho...ja kr..
    mera blog hai http://geeta-myaccount.blogspot.in

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