प्रश्न: भगवान श्री, आपका यह स्टेटमेंट बड़ी दिक्कत में डाल देता है कि अचेतन मन भगवान
से जुड़ा हुआ होता है। यह तो जुंग ने पीछे से बताया, मिथोलाजी का कलेक्टिव अनकांशस
से संबंध जोड़कर। मगर फ्रायड कहता है कि वह शैतान से भी जुड़ा होता है, तो तकलीफ बढ़ जाती है।
ओशो : फ्रायड का ऐसा जरूर खयाल है
कि वह जो अचेतन मन है हमारा,
वह भगवान से ही नहीं, शैतान से भी जुड़ा होता है। असल में भगवान और शैतान हमारे शब्द हैं।
जब किसी चीज को हम पसंद नहीं करते,
तो हम कहते हैं, शैतान से जुड़ा है;
और किसी चीज को जब हम पसंद करते हैं, तो हम कहते हैं,
भगवान से जुड़ा है। लेकिन मैं इतना ही कह रहा
हूं कि अज्ञात से जुड़ा है। और अज्ञात मेरे लिए भगवान है। और भगवान में मेरे लिए
शैतान समाविष्ट है, उससे अलग नहीं है।
असल में जो हमें पसंद नहीं है, मन होता है कि वह शैतान ने किया होगा। जो गलत, असंगत नहीं है,
वह भगवान ने किया होगा। ऐसा हमने सोच रखा है
कि हम केंद्र पर हैं जीवन के,
और जो हमारे पसंद पड़ता है, वह भगवान का किया हुआ है, भगवान हमारी सेवा कर रहा है।
जो पसंद नहीं पड़ता, वह शैतान का किया हुआ है; शैतान हमसे दुश्मनी कर रहा है। यह मनुष्य का अहंकार है, जिसने शैतान और भगवान को भी अपनी सेवा में लगा रखा है।
भगवान के अतिरिक्त कुछ है ही
नहीं। जिसे हम शैतान कहते हैं,
वह सिर्फ हमारी अस्वीकृति है। जिसे हम बुरा
कहते हैं, वह सिर्फ हमारी अस्वीकृति है। और अगर हम
बुरे में भी गहरे देख पाएं,
तो फौरन हम पाएंगे कि बुरे में भला छिपा
होता है। दुख में भी गहरे देख पाएं,
तो पाएंगे कि सुख छिपा होता है। अभिशाप में
भी गहरे देख पाएं, तो पाएंगे कि वरदान छिपा होता है। असल में
बुरा और भला एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। शैतान के खिलाफ जो भगवान है, उसे मैं अज्ञात नहीं कह रहा; मैं अज्ञात उसे कह रहा हूं, जो हम सबके जीवन की भूमि है, जो अस्तित्व का आधार है। उस
अस्तित्व के आधार से ही रावण भी निकलता है, उस अस्तित्व के आधार से ही
राम भी निकलते हैं। उस अस्तित्व से अंधकार भी निकलता है, उस अस्तित्व से प्रकाश भी निकलता है।
हमें अंधकार में डर लगता है, तो मन होता है,
अंधकार शैतान पैदा करता होगा। हमें रोशनी
अच्छी लगती है, तो मन होता है कि भगवान पैदा करता होगा।
लेकिन अंधकार में कुछ भी बुरा नहीं है, रोशनी में कुछ भी भला नहीं
है। और जो अस्तित्व को प्रेम करता है, वह अंधकार में भी परमात्मा को
पाएगा और प्रकाश में भी परमात्मा को पाएगा।
सच तो यह है कि अंधकार को भय
के कारण हम कभी--उसके सौंदर्य को--जान ही नहीं पाते; उसके रस को, उसके रहस्य को हम कभी जान ही नहीं पाते। हमारा भय मनुष्य निर्मित
भय है। कंदराओं से आ रहे हैं हम,
जंगली कंदराओं से होकर गुजरे हैं हम। अंधेरा
बड़ा खतरनाक था। जंगली जानवर हमला कर देता; रात डराती थी। इसलिए अग्नि जब
पहली दफा प्रकट हो सकी, तो हमने उसे देवता बनाया। क्योंकि रात
निश्चिंत हो गई; आग जलाकर हम निर्भय हुए। अंधेरा हमारे अनुभव
में भय से जुड़ गया है। रोशनी हमारे हृदय में अभय से जुड़ गई है।
लेकिन अंधेरे का अपना रहस्य
है, रोशनी का अपना रहस्य है। और इस जीवन में जो
भी महत्वपूर्ण घटित होता है,
वह अंधेरे और रोशनी दोनों के सहयोग से घटित
होता है। एक बीज हम गड़ाते हैं अंधेरे में, फूल आता है रोशनी में। बीज हम
गड़ाते हैं अंधेरे में, जमीन में; जड़ें फैलती हैं अंधेरे में, जमीन में। फूल खिलते हैं आकाश में, रोशनी में। एक बीज को रोशनी
में रख दें, फिर फूल कभी न आएंगे। एक फूल को अंधेरे में
गड़ा दें, फिर बीज कभी पैदा न होंगे। एक बच्चा पैदा
होता है मां के पेट के गहन अंधकार में, जहां रोशनी की एक किरण नहीं
पहुंचती। फिर जब बड़ा होता है,
तो आता है प्रकाश में। अंधेरा और प्रकाश एक
ही जीवन-शक्ति के लिए आधार हैं। जीवन में विभाजन, विरोध, पोलेरिटी मनुष्य की है।
फ्रायड जो कहता है कि शैतान
से जुड़ा है...। फ्रायड यहूदी-चिंतन से जुड़ा था। फ्रायड यहूदी घर में पैदा हुआ था।
बचपन से ही शैतान और परमात्मा के विरोध को उसने सुन रखा था। यहूदियों ने दो हिस्से
तोड़ रखे हैं--एक शैतान है,
एक भगवान है। वह आदमी के ही मन के दो हिस्से
हैं। तो फ्रायड को लगा कि जहां-जहां से बुरी चीजें उठती हैं अचेतन से, वे बुरी-बुरी चीजें शैतान डाल रहा होगा।
नहीं, कोई शैतान नहीं है। और अगर शैतान हमें दिखाई पड़ता है, तो कहीं न कहीं हमारी बुनियादी भूल है। धार्मिक व्यक्ति शैतान को
देखने में असमर्थ है। परमात्मा ही है। और अचेतन--जहां से वैज्ञानिक सत्य को पाता
है या धार्मिक सत्य को पाता है--वह परमात्मा का द्वार है। धीरे-धीरे हम उसकी गहराई
में उतरेंगे, तो खयाल में निश्चित आ सकता है।
तस्य संजनयन्हर्षं कुरुवृद्धः
पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शंखं
दध्मौ प्रतापवान्।। १२।।
ततः शंखाश्च भेर्यश्च
पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स
शब्दस्तुमुलोऽभवत्।। १३।।
इस प्रकार द्रोणाचार्य से
कहते हुए दुर्योधन के वचनों को सुनकर, कौरवों में वृद्ध, बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने उसके हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए
उच्च स्वर से सिंहनाद के समान गर्जकर शंख बजाया। उसके उपरांत शंख और नगाड़े तथा ढोल, मृदंग और नृसिंहादि बाजे एक साथ ही बजे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर
हुआ।
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति
स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ
शंखौ प्रदध्मतुः।। १४।।
पाग्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं
धनंजयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं
भीमकर्मा वृकोदरः।। १५।।
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो
युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च
सुघोषमणिपुष्पकौ।। १६।।
इसके अनंतर सफेद घोड़ों से
युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाए। उनमें
श्रीकृष्ण ने पांचजन्य नामक शंख और अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाया। भयानक कर्म
वाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया। कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय
नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नाम वाले शंख बजाए।